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मामूल | शाही शायरी
mamul

नज़्म

मामूल

फ़रहत एहसास

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मैं भी बादशाह की हुकूमत का
मुनकिर हूँ

लेकिन जीने की आरज़ू में
रोज़ उस की चौखट पर

सूरज सा उभरता हूँ
शाम सा डूबता हूँ

घर में
एलान-ए-बग़ावत के तौर पर

बीवी बच्चों को मारता हूँ
रात रात जागता हूँ