मैं भी बादशाह की हुकूमत का
मुनकिर हूँ
लेकिन जीने की आरज़ू में
रोज़ उस की चौखट पर
सूरज सा उभरता हूँ
शाम सा डूबता हूँ
घर में
एलान-ए-बग़ावत के तौर पर
बीवी बच्चों को मारता हूँ
रात रात जागता हूँ
नज़्म
मामूल
फ़रहत एहसास
नज़्म
फ़रहत एहसास
मैं भी बादशाह की हुकूमत का
मुनकिर हूँ
लेकिन जीने की आरज़ू में
रोज़ उस की चौखट पर
सूरज सा उभरता हूँ
शाम सा डूबता हूँ
घर में
एलान-ए-बग़ावत के तौर पर
बीवी बच्चों को मारता हूँ
रात रात जागता हूँ