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माह-ए-कामिल | शाही शायरी
mah-e-kaamil

नज़्म

माह-ए-कामिल

ख़दीजा ख़ान

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एक माह-ए-कामिल है मेरा
इस काएनात में

जिस की रौशनी में
जगमगाता है मेरा अक्स

मुनव्वर हैं मेरी राहें
नूर उस का है पुर-सुकून

वो तजल्ली है राह-ए-हयात की
उस की नर्म-ओ-नाज़ुक शुआ'ओं से

कू-ए-दिल में उजाला है
मेरे माह-ए-कामिल को

मेरे मौला
महफ़ूज़ रखना