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लौह-ओ-क़लम | शाही शायरी
lauh-o-qalam

नज़्म

लौह-ओ-क़लम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे

असबाब-ए-ग़म-ए-इश्क़ बहम करते रहेंगे
वीरानी-ए-दौराँ पे करम करते रहेंगे

हाँ तल्ख़ी-ए-अय्याम अभी और बढ़ेगी
हाँ अहल-ए-सितम मश्क़-ए-सितम करते रहेंगे

मंज़ूर ये तल्ख़ी ये सितम हम को गवारा
दम है तो मुदावा-ए-अलम करते रहेंगे

मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-मय से
तज़ईन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहेंगे

बाक़ी है लहू दिल में तो हर अश्क से पैदा
रंग-ए-लब-ओ-रुख़्सार-ए-सनम करते रहेंगे

इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे