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लम्हा-ए-रुख़्सत | शाही शायरी
lamha-e-ruKHsat

नज़्म

लम्हा-ए-रुख़्सत

मख़दूम मुहिउद्दीन

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कुछ सुनने की ख़्वाहिश कानों को कुछ कहने का अरमाँ आँखों में
गर्दन में हमाइल होने की बेताब तमन्ना बाँहों में

मुश्ताक़ निगाहों की ज़द से नज़रों का हया से झुक जाना
इक शौक़-ए-हम-आग़ोशी पिन्हाँ इन नीची भीगी पलकों में

शाने पे परेशाँ होने को बेचैन सियह काकुल की घटा
वारफ़्ता निगाहों से पैदा है एक अदा-ए-ज़ुलेख़ाई

अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल तेवर से रुस्वाई का सामाँ आँखों में
फ़ुर्क़त की भयानक रातों का रंगीन तसव्वुर में आना

इफ़शा-ए-हक़ीक़त के डर से हँस देने की कोशिश होंटों में
आँसू का ढलक कर रह जाना ख़ूँ-गश्ता दिलों का नज़राना

तकमील-ए-वफ़ा का अफ़्साना कह जाना आँखों आँखों में