EN اردو
लकीरें | शाही शायरी
lakiren

नज़्म

लकीरें

आदिल हयात

;

हथेली की लकीरों में
मुक़द्दर क़ैद है

उम्र-ए-रवाँ के बेशतर लम्हे
न जाने कौन सी आसूदगी की जुस्तुजू में

कितने ही दरियाओं को इक रौ में पीछे छोड़ आए हैं
मगर साहिल पे आ कर

मेरे प्यासे होंट अब तक फड़फड़ाते हैं
मिरी आँखों में भी नाकामियाँ ही रक़्स करती हैं

मगर
एहसास के तारीक आँगन में

उमीदों की किरन सरगोशियाँ करती
सुनाई जब भी देती हैं

तो फिर से ताज़ा-दम हो कर
मुक़द्दर से

रिहाई की
जसारत करने लगता हूँ