बादशाह मर चुका है
वारिसैन आएँ अब ब-सद-ख़ुलूस जंग हो
ये ताज-ओ-तख़्त
सल्तनत
लगान फैली खेतियों का
कौन लेगा
ख़िलअतें वज़ारतें
अता करेगा
बे-ज़बाँ अवाम
किस के नाम पे
दुआ करेंगे खतियाँ ख़िराज
किस के नाम पे
उगल सकेंगी
मिनमिनाते भीड़ के जुलूस
किस के नाम पे
ब-सद-ख़ुलूस
फ़ख़्र से चलेंगे
क़त्ल-गाह को
नज़्म
लगान
अबरारूल हसन