EN اردو
लफ़्ज़ | शाही शायरी
lafz

नज़्म

लफ़्ज़

ज़ीशान साहिल

;

जब लफ़्ज़ चलना चाहते हैं
चलते हैं और दूसरे लफ़्ज़ों के

पीछे चलना शुरूअ कर देते हैं
एक के पीछे एक

लफ़्ज़ चलते रहते हैं
लफ़्ज़ एक-दूसरे के पीछे

पागलों की तरह नहीं दौड़ते
लफ़्ज़ आहिस्ता आहिस्ता चलते हैं

अपने चलने के दौरान लफ़्ज़
एक-दूसरे पर मिट्टी नहीं उछालते

एक-दूसरे पर पानी नहीं फेंकते
लफ़्ज़ दूसरे लफ़्ज़ों को कीचड़ में नहीं गिराते

लफ़्ज़
दूसरे छोटे छोटे लफ़्ज़ों को

धक्के नहीं देते
आगे जाने वाले लफ़्ज़

पीछे आने वाले लफ़्ज़ों का
रास्ता नहीं रोकते

ख़ाली हाथ
लफ़्ज़ चलते चले जाते हैं

उन के पास अख़रोट की लकड़ी से बनी
लोहे के दस्ते वाली कोई छड़ी नहीं होती

न ही कोई बंदूक़
लफ़्ज़ लफ़्ज़ों को

बहुत ज़ियादा डराते नहीं
लफ़्ज़ दूसरे लफ़्ज़ों को सहारा देते हैं

ज़िंदा रखते हैं
लफ़्ज़ किसी लफ़्ज़ को

आदमी की तरह
अंधेरे में ले जा कर

उस का गला नहीं घोंटते
वो एक दूसरे को रौशनी में रख कर

हमेशा अपनी अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए
आगे बढ़ते रहते हैं

चलते रही रहते हैं