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लफ़्ज़ नहीं बोलते | शाही शायरी
lafz nahin bolte

नज़्म

लफ़्ज़ नहीं बोलते

कुमार पाशी

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सुना यही है
कि लफ़्ज़ अब बोलते नहीं हैं

जो मुझ पे अब तक गुज़र चुका है
गुज़र रहा है

वो लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ मर रहा है
मैं हर तरफ़ से

मरे हुओं में घिरा हुआ हूँ
कभी कभी में

डरा डरा सा
सभी को चुप-चाप देखता हूँ

कभी कभी सर उठा के मुर्दे
उदास आँखों से

देखते हैं
मैं मौत की वादियों में जैसे उतर गया हूँ

कि जैसे मैं आज मर गया हूँ