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ला से ख़ला तक | शाही शायरी
la se KHala tak

नज़्म

ला से ख़ला तक

सलाहुद्दीन मोहम्मद

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अबु-जेहल अन-पढ़ कहाँ था
कि अन-पढ़ तो नबी थे

जिन्हें ला पे इसरार था
और ये भी

कि ला से ख़ला तक
ख़ला से परे भी

ख़ुदा का जहाँ था
कि मेराज-ए-आदम में

तकरीम-ए-आदम
ख़ुदा ला-मकाँ था

अबु-जेहल अपने क़बीले में
अफ़ज़ल था आलिम-सिफ़त था

कि अज्दाद ने जिन बुतों को तराशा
अबु-जेहल ने उन को सज्दा किया

ला को जाना तमाशा