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कुछ रिश्ते जलाने पड़े | शाही शायरी
kuchh rishte jalane paDe

नज़्म

कुछ रिश्ते जलाने पड़े

कमल उपाध्याय

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चाँद भी कम्बल ओढ़े निकला था
सितारे ठिठुर रहें थे

सर्दी बढ़ रही थी
ठण्ड से बचने के लिए

मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े
कुछ रिश्ते

जो बस नाम के बचे थे
खींच रहा था

मैं उन को
कभी वो मुझे खींचा करते थे

सर्दी बढ़ रही थी
ठण्ड से बचने के लिए

मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े
कुछ रिश्ते

बहुत कमज़ोर हो चले थे
उन की लपट भी बहुत कम थी

कुछ इतने पतले
की जलने से पहले राख हो गए

सर्दी बढ़ रही थी
ठण्ड से बचने के लिए

मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े
कुछ पुराने रिश्ते थे

मेरे जनम के पहले के
सजोया था उन्हें मैं ने

उन्हें नहीं था कोई लगाव मुझ से
सर्दी बढ़ रही थी

ठण्ड से बचने के लिए
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े