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कोई दूद से बन जाता है वजूद | शाही शायरी
koi dud se ban jata hai wajud

नज़्म

कोई दूद से बन जाता है वजूद

हामिद जीलानी

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आधी रात को फ़ोन बजा
और उभरी इक अन-जानी मग़्लूब सदा

अपनी चीख़ की दहशत से
अभी अभी वो जागी है मालूम हुआ

बैज़वी चेहरा
बे-सूरत

सर पर मुड़े-तुड़े दो सींग
और सीने के वस्त में इक

पंज-कोनी आँख
आँख की पुतली में मेरा ही अक्स मुक़य्यद

आतिश-फ़िशाँ पहाड़ की गहराई से उभर कर
ख़ूनी पंजे

भेंच भेंच कर
खुरदुरे लहजे में वो चीख़ा

अपनी मर्ज़ी की तो सुब्ह बिस्तर पर
जिस्म नहीं

मकड़ी का जाला पाओगी
मेरा हुक्म है आ जाओ

और बरहना होते ही
मुझ को छू कर

मेरे जैसी बन जाओ
आ जाओ

आ जाओ
आ जाओ