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कोई आवाज़ नहीं | शाही शायरी
koi aawaz nahin

नज़्म

कोई आवाज़ नहीं

तनवीर अंजुम

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गर्द हमारे घरों तक फैल गई
उस मौसम में कोई बारिश नहीं

हम ने बादल के आख़िरी टुकड़े को गुज़र जाने दिया
अब वो मेरे ना-फ़रमान बेटे की तरह

वापस नहीं आएगा
दुश्मनी हमारे दिलों तक फैल गई

उस रात में कोई करामात नहीं
हम ने पानी को कीचड़ में मिल जाने दिया

अब वो बूढ़े की खोई हुई बीनाई की तरह वापस नहीं आएगा
मौत हमारे जिस्मों तक फैल गई

इन गलियों में कोई आवाज़ नहीं
हम ने ख़ून को सड़कों पर बह जाने दिया

अब वो मेरे बिछड़े हुए ख़ुदा की तरह
वापस नहीं आएगा