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कोह-ए-निदा से आगे | शाही शायरी
koh-e-nida se aage

नज़्म

कोह-ए-निदा से आगे

सय्यद इक़बाल गिलानी

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उसी गुम्बद-ए-हश्त-पहलू के आगे
वही एक कीकर का छिद्रा सा पेड़

जहाँ आ के पहले-पहल में रुका था
वहीं आ खड़ा हूँ

मगर इस झरोके का
जिस में से इक ख़ूब-सूरत सा चेहरा

मुझे देख कर पहले रोया था
और फिर हँसा था

निशाँ तक नहीं है