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किताब का फूल | शाही शायरी
kitab ka phul

नज़्म

किताब का फूल

मुनीबुर्रहमान

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खिला था सुब्ह सवेरे जब आफ़्ताब का फूल
दिया था तोड़ के उस ने मुझे गुलाब का फूल

ज़माना बीत गया, इत्तिफ़ाक़ से मुझ को
मिला है आज ये सूखा हुआ किताब का फूल

हुजूम-ए-ग़म से निकल आए हैं मिरे आँसू
कि है ये तोहफ़ा-ए-माज़ी मिरे शबाब का फूल