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कि ख़्वाब था बस तुम्हारा आना | शाही शायरी
ki KHwab tha bas tumhaara aana

नज़्म

कि ख़्वाब था बस तुम्हारा आना

करामत बुख़ारी

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तुम्हारी आँखें ख़ुशी की ख़्वाहिश लिए हुई थीं
तुम्हारी सोचों में अहद-ए-माज़ी की सिलवटें थीं

तुम्हारे गेसू घुमरती घिरती घटाओं के कुछ घनेरे बादल बने हुए थे
क़दम बढ़ाए नज़र झुकाए बदन बदन चुराए आ रही थी

हवाएँ भी गुनगुना रही थीं
कली कली मुस्कुरा रही थी

ख़िज़ाँ-रसीदा चमन में जैसे बहार चुपके से आ रही थी
मगर अचानक

ये ख़्वाब टूटा तो मैं ने देखा
रिदा-ए-शब पे कोई सितारा नहीं था बाक़ी

जहाँ जुदाई के सारे लम्हे गले मिले थे वहाँ मोहब्बत की माँग भरने को शबनम उतरी
ख़िज़ाँ-रसीदा बदन-दरीदा वो शब-गज़ीदा उदास लम्हे!

अजीब वहशत जगा रहे थे
वजूद से वो अदम की दुनिया में जा रहे थे

कि ख़्वाब था बस तुम्हारा आना