सुनते हैं शहर में जो ख़्वातीन का है बैंक
परवेज़ का नहीं है ये परवीन का है बैंक
रक्खी हैं इस लिए यहाँ ख़ातून मैनेजर
इस मोहकमे को चाहिए बातून मैनेजर
लेडीज़ इत्तिहाद जो बेगानगी से है
क्या जाने ख़ौफ़ क्या उन्हें मर्दांगी से है
नोक-ए-ज़बाँ भी चलने लगी है ज़बाँ के साथ
बेटी भी है शरीक लड़ाई में माँ के साथ
हर नाज़नीं के सामने इक ब्यूटी-बॉक्स है
बाक़ी रखा है घर में ये थोड़ा सा अक्स है
बैठी हैं अपने सामने गेसू सँवार के
लॉकर में रख दिया है दुपट्टा उतार के
चटख़ारे हैं ज़बाँ पे नज़र में इशारे हैं
हर माह-वश के पर्स में इमली कटारे हैं
जो बात कर रही हैं कमाई के शोबे की
वो हेड हैं लगाई-बुझाई के शोबे की
कल सास से ज़बान के बल पर लड़ी हैं ये
इल्म-ए-लिसानियात में पी-एच-डी हैं ये
खाते की इन को फ़िक्र न लेजर की फ़िक्र है
ननदों की ग़ीबतें हैं तो देवर का ज़िक्र है
शादी के ब'अद नुक़्ता बनीं डैश हो गईं
पहले जो चेक-बुक थीं वो अब कैश हो गईं
हर नाज़नीं की उम्र भी ख़ुफ़िया एकाऊंट है
क्या जाने इन की उम्र में कितना अमाउंट है
ये हुस्न का ख़ज़ाना कोई क्या दबोचेगा
डाकू भी डाका डालने से पहले सोचेगा
नाकारा शौहरों को भी डेबिट कराईये
निस्वानियत यहाँ से क्रेडिट कराईये
नज़्म
ख़्वातीन का बैंक
खालिद इरफ़ान