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ख़्वाहिश | शाही शायरी
KHwahish

नज़्म

ख़्वाहिश

ख़्वाजा रब्बानी

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ये क्या पागल तमन्ना है जो सोचो में उतर गई है
परों में इक अजनबी हवा भर गई है

शाम के धुँदलके से कहना पड़ेगा
घर लौटने की ख़्वाहिश मर गई है