रात होते ही
ख़्वाबों का छकड़ा चल पड़ता है
छकड़े में बहुत सारे ख़्वाब होते हैं
ख़्वाबों का छकड़ा
तरतीब के साथ ख़्वाब बाँटने लगता है
हर शख़्स तक
उस का ख़्वाब पहुँच जाता है
सारी रात
लोग ख़्वाब के ख़ुमार में रहते हैं
सुब्ह-ए-काज़िब होते ही
छकड़ा ख़्वाबों को वसूल करता है
मुझे ख़्वाब में भी
बहुत सारे ख़्वाब मिलते हैं
रात होते ही
ख़्वाबों के छकड़े में
मुझे जोत दिया जाता है
नज़्म
ख़्वाबों का छकड़ा
मुस्तफ़ा अरबाब