ये ताँबे का आकाश उजाले से ख़ाली
और ये लोहे के शहर धुएँ में डूबे हुए
ये नीवन साइन की रौशनियों में घिरी हुई तारीक सफ़ें
ये शोर शराबा आने वाली लम्बी रात की हैबत का
सच पूछो तो अब मेरा दुख तंहाई नहीं
कुछ और ही बात है जिस से दिल घबराया है
मैं चाहूँ तो
मुझ को भी कोई बे-कार बहाना जीने का मिल सकता है
मैं चाहूँ तो
इस शोर शराबे में ख़ुद को खो सकता हूँ
मैं चाहूँ तो
मेरा दुख तंहाई नहीं
कुछ और ही बात है जिस से दिल घबराता है
नज़्म
ख़्वाब-तमाशा(1)
कुमार पाशी