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ख़्वाब | शाही शायरी
KHwab

नज़्म

ख़्वाब

राही मासूम रज़ा

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आओ वापस चलें
रात के रास्ते पर वहाँ

नींद की बस्तियाँ थीं जहाँ
ख़ाक छानीं

कोई ख़्वाब ढूँडें
कि सूरज के रस्ते का रख़्त-ए-सफ़र ख़्वाब है

और इस दिन के बाज़ार में
कल तलक

ख़्वाब कमयाब था
आज

नायाब है