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ख़्वाब की तरह से याद है | शाही शायरी
KHwab ki tarah se yaad hai

नज़्म

ख़्वाब की तरह से याद है

जगन्नाथ आज़ाद

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ख़्वाब की तरह से है याद कि तुम आए थे
जिस तरह दामन-ए-मशरिक़ में सहर होती है

ज़र्रे ज़र्रे को तजल्ली की ख़बर होती है
और जब नूर का सैलाब गुज़र जाता है

रात भर एक अँधेरे में बसर होती है
कुछ इसी तरह से है याद कि तुम आए थे

जैसे गुलशन में दबे पाँव बहार आती है
पत्ती पत्ती के लिए ले के निखार आती है

और फिर वक़्त वो आता है कि हर मौज-ए-सबा
अपने दामन में लिए गर्द-ओ-ग़ुबार आती है

कुछ इसी तरह से है याद कि तुम आए थे
जिस तरह महव-ए-सफ़र हो कोई वीराने में

और रस्ते में कहीं कोई ख़याबाँ आ जाए
चंद लम्हों में ख़याबाँ के गुज़र जाने पर

सामने फिर वही दुनिया-ए-बयाबाँ आ जाए
कुछ इसी तरह से है याद कि तुम आए थे