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ख़्वाब-कदों से वापसी | शाही शायरी
KHwab-kadon se wapsi

नज़्म

ख़्वाब-कदों से वापसी

क़ासिम याक़ूब

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ऐ मेरे बदन से लिपटी हिजरत की सरशारी!
ख़्वाहिश की बे-सम्त जिहत के कहने में मत आ

मेरे बाज़ुओं में क़ुव्वत तो है
जो सूखे समुंदर में तैरती कश्ती के पतवार में उतरी है

लेकिन मेरी टाँगों में
हरकत के कोड्स मुसलसल मरते जाते हैं

गूँज एक बहाओ में मेरी जानिब बढ़ती है
और ख़ामोशी...

चेहरे के ख़ाल-ओ-ख़त से नोच के ले जाती है
मैं रफ़्ता रफ़्ता

ख़्वाहिश के अम्बार में गिरता जाता हूँ
नींद की तुग़्यानी में बहता जाता हूँ

फिर सेहन के नल से बहते पानी की आवाज़
मिरे रस्ते पर

सरगोशी फेंक के जाती है
मुझ को ख़्वाब-कदों की हैरत से वापस ले आती है