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खूँटी पर लटका हुआ बदन | शाही शायरी
khunTi par laTka hua badan

नज़्म

खूँटी पर लटका हुआ बदन

जावेद शाहीन

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शाम होते ही मैं
पसीने में भीगा हुआ बदन

खूँटी से लटका देता हूँ
दिन भर की कमाई देखने के लिए

जेबें टटोलता हूँ तो ख़ाली हाथ
जेबों से बाहर गिर पड़ते हैं

सोचता हूँ
पचास से ऊपर का हो चुका हूँ

मेरा मुस्तक़बिल क्या होगा
आने वाली नस्ल को क्या मुँह दिखाऊँगा

पसीने में भीगा हुआ बदन
धोने से डरता हूँ

कि आने वाले मेरी मेहनत की निशानी माँगेंगे
तो क्या दिखाऊँगा

खूँटी पर लटका हुआ बदन
सारी रात मुझे घूरता रहता है

ख़ाली हाथ
चारपाई के नीचे पड़े रहते हैं

सुब्ह होने पर
बदन खूँटी से उतारता हूँ

हाथ चारपाई के नीचे से उठाता हूँ
दरवाज़ा खोलता हूँ

दिन अपनी पूरी सफ़्फ़ाकी के साथ
एक बार फिर मेरे मुक़ाबिल खड़ा होता है