आज का दिन कैसे गुज़रेगा कल गुज़रेगा कैसे
कल जो परेशानी में बीता वो भूलेगा कैसे
कितने दिन हम और जिएँगे काम हैं कितने बाक़ी
कितने दुख हम काट चुके हैं और हैं कितने बाक़ी
ख़ास तरह की सोच थी जिस में सीधी बात गँवा दी
छोटे छोटे वहमों ही में सारी उम्र बिता दी
नज़्म
ख़ूब-सूरत ज़िंदगी को हम ने कैसे गुज़ारा
मुनीर नियाज़ी