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ख़ूबसूरत मोज़े | शाही शायरी
KHub-surat moze

नज़्म

ख़ूबसूरत मोज़े

सईदुद्दीन

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तुम ने मेरे पहुँचने से पहले
अपने ख़ूबसूरत मोज़े धो कर

अपनी बॉलकनी में बॉलकनी पर
सूखने के लिए डाल दिये थे

एक प्यासी चिड़िया
बॉलकनी पर बैठी

उस के क़तरों को
ज़मीं पर गिरने से पहले ही

उचक लेती थी
मेरी आहट पर

वो फिर से उड़ गई
तुम ने बॉलकनी में खुलने वाला दरवाज़ा बंद कर दिया

मौज़ूँ से टपकने वाली बूंदों को
मैं तुम्हारी हम-आग़ोशी में भी

देर तक सुनता रहा