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ख़ुश्बू का ज़वाल | शाही शायरी
KHushbu ka zawal

नज़्म

ख़ुश्बू का ज़वाल

राज नारायण राज़

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एक हवेली ढा कर!
तुम ने इक ऊँचा ऐवान बनाया

सारे साज फ़राहम कर के
ख़ूब सँवारा

ख़ूब सजाया
और हवेली के मलबे को!

ऐसी जगह फेंकवाया
जहाँ पर

एक गुलाब की शाख़-ए-नौ पर
एक नवेला फूल खिला था

फूल भी कैसा!
जिस से सब की रूह मोअत्तर हो जाती थी!