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ख़ुदा से | शाही शायरी
KHuda se

नज़्म

ख़ुदा से

शहराम सर्मदी

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मैं मुँह भर क़हक़हे पे क़हक़हे
जो यूँ लगाने की मशक़्क़त

अज़-सहर ता-शाम करता हूँ दयानत से
तो मज़दूरी भी वाजिब सी मिले कोई

बहुत दिन से मिरी आँखें
कभी भर भर नहीं रोईं