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ख़ुद-शनासी | शाही शायरी
KHud-shanasi

नज़्म

ख़ुद-शनासी

यूसुफ़ तक़ी

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मैं अँधेरे की फैली हुई खाईयों में जो गुम हो गया हूँ
तो इस की वजह ये नहीं है

कि मुझ में ज़िया-बार किरनों का फ़ुक़्दान है
या रौशनी की तमाज़त को सहने का हामिल नहीं हूँ

हक़ीक़त तो ये है
जिसे रौशनी का तुम मम्बा' समझ कर

अज़ल से तवाफ़-ए-मुकर्रर में मसरूफ़ हो
वो तुम्हारे ही अंदर की सिमटी हुई तारीकियों के सिवा कुछ नहीं है

और मैं....!
मैं मुजस्सम मुनव्वर-निगाही की ख़्वाहिश लिए

सफ़र में रहा हूँ
सफ़र में रहूँगा अबद तक!!