क़त्ल तो ये नहीं
ख़ुद-कुशी है
आफ़्ताब अपने ख़ूँ-रेज़ जज़्बात की ज़र्ब-कारी से
जान दे के
ग़र्बी उफ़ुक़ के परे दफ़्न है
और इक ख़ुद-कुशी देख लो
मैं भी अपने तहम्मुल की ग़लत-कोशियों का हूँ मारा हुआ
मुझ को अपने ही हाथों से खोदी हुई
क़ब्र में दफ़्न कर दो मिरे दोस्तो
नज़्म
ख़ुद-कुशी
सूफ़ी तबस्सुम