चुप-चाप रहो
वर्ना ख़ामोशी की चादर
चाक हो जाएगी
मुमकिन है इस की ये पाकी भी
पाकी न रह जाए
और यहीं फिर दिन के ढलने पर
एहसास-ए-गुनह बढ़ जाए
पाकी, पाकी न रह जाए
और यहीं ये ख़ामोशी की चादर
ओढ़ न पाए
कोढ़ मन का वो बन जाए
बेहतर है चुप-चाप रहो
इस ख़ामोशी की चादर को
गर्द-ए-अना से दूर रखो
ख़ुद को दुनिया से दूर रखो
दुनिया ख़ुद बन जाओ
अपने अंदर तह-दर-तह बातिन में
एक जहाँ आबाद करो
अख़्लाक़ ओ सदाक़त
सब्र-ओ-क़नाअत
अब्द ओ रियाज़त
सम्तें बन जाएँ
अर्ज़ ओ समा बन जाएँ
ख़ुद को ख़ुद में तहलील करो
अपनी फिर तकमील करो
नज़्म
ख़ुद को ख़ुद में तहलील करो
साहिल अहमद