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ख़ुद-फ़रेबी | शाही शायरी
KHud-farebi

नज़्म

ख़ुद-फ़रेबी

खुर्शीद अकबर

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तुम मुझे इम्तिहान में डालो
मैं तुम्हें इम्तिहान में डालूँ

फिर नतीजा हो जिस का रुस्वाई
और हासिल हो शाम-ए-तन्हाई

इस तअ'ल्लुक़ का फ़ाएदा क्या है
इस से बचने का रास्ता क्या है

मैं ने पहले भी तुम को देखा है
और हर बार देखना है क्या

जाओ तुम को नई हयात मिले
ख़ुद-फ़रेबी से अब नजात मिले

मैं कोई याद हूँ न कोई ख़याल
मेरा आशिक़ है तू न शहर-ए-जमाल

अपनी दुनिया में ख़ुश रहो जानाँ
क़िस्सा-ए-दर्द मत कहो जानाँ

रौशनी से गुज़र गए साए
तीरगी में उतर गए साए

फिर कहीं नाम है न कोई पता
ज़िंदगी तेरा घर कहाँ है बता