EN اردو
ख़िज़ाँ के आते आते | शाही शायरी
KHizan ke aate aate

नज़्म

ख़िज़ाँ के आते आते

अहमद आज़ाद

;

मेरे पास
बहुत सारे ख़्वाब

और बहुत सारे सेब हैं
एक अफ़रूदेती के लिए

एक सैफ़ू के लिए
और एक अपना कोज़ी को दवा के लिए

जिस ने आईने के सामने
अपनी छातियों का

टेनिस की गेंद
या धरती से

मुवाज़ना नहीं किया होगा
मेरे तमाम ख़्वाब

उन के लिए
जिन के आँसुओं से मेरी नज़्में बनीं

मेरी महबूबा के लिए
मेरे पास न कोई ख़्वाब है

और न सेब
ख़िज़ाँ के आते आते

मैं उस दरख़्त के साए से
उठ कर चला जाऊँगा

जहाँ ख़्वाब और सेब
उगते हैं