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''खेल जारी रहे'' | शाही शायरी
khel jari rahe

नज़्म

''खेल जारी रहे''

नैना आदिल

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बे-झिजक, बे-ख़तर
बे-धड़क वार कर

मेरी गर्दन उड़ा
और ख़ूँ से मिरे कामयाबी के अपनी नए जाम भर

छीन ले हुस्न-ओ-ख़ूबी, अना, दिलकशी
मेरे लफ़्ज़ों में लिपटा हुआ माल-ओ-ज़र

मेरी पोरों से बहती हुई रौशनी
मेरे माथे पे लिक्खे हुए सब हुनर

तुझ से शिकवा नहीं
ऐ अदू मेरे मैं तेरी हमदर्द हूँ

तेरी बे-चेहरगी मुझ को भाती नहीं
तुझ से कैसे कहूँ!!!

तुझ से कैसे कहूँ! क़त्ल करना मुझे तेरे बस में नहीं
(और हो भी अगर, तेरी कम-माएगी मा मुदावा नहीं)

हाँ मगर तेरी दिल-जूई के वास्ते
मेरी गर्दन पे यूँ तेरा ख़ंजर रहे

(तेरी दानिस्त में)
खेल जारी रहे