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ख़ौफ़ | शाही शायरी
KHauf

नज़्म

ख़ौफ़

असलम इमादी

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एक साया सा दर आया
कोई नीला साया

काँप उठी शाख़-ए-नहीफ़
काँप उठी एक नई सी आहट

रात बढ़ती रही मस्मूम सियाह
सैल से बच के अकेला मैं कहाँ बैठा हूँ

जिस्म से नुक़्ते में तब्दील हुआ जाता हूँ