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ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त | शाही शायरी
KHarid-o-faroKHt

नज़्म

ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त

अबरारूल हसन

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उन्हें बेचना तो ज़रूरी है
बाज़ार के मोड़ पर

वक़्फ़ा वक़्फ़ा सदा
कीमिया मिल गया कीमिया मिल गया

वक़्फ़ा वक़्फ़ा सदा
उन सदाओं का आहंग

मस्जिद शिवाला
सहीफ़े

सहीफ़ों का आहंग
नग़्मात

नग़्मों का आहंग
नग़्मात

नग़्मों का आहंग
तब्ल-ओ-अलम

फ़ौज आहंग पर मार्च करती हुई
उन्हें बेचना तो ज़रूरी है वर्ना

ख़यालात नर्गिस-ज़दा
अपने माहौल के ग़ार में बे-नवा ही रहेंगे

उन्हें बेचना तो ज़रूरी है वर्ना
किसी कीमिया-गर की तक़लीद का ज़हर पीना पड़ेगा

हमें तो ख़रीदार बन के ही जीना पड़ेगा