ख़राबी है मोहब्बत में
मोहब्बत में ख़राबी है
ये क़ब्रें पानियों में घुल रही हैं
सो उन के उस्तुख़्वाँ देखो
मैं मजनूँ को लड़कपन में बहुत रोया
बहुत रोया मैं मजनूँ को लड़कपन में
कि पानी मिट्टियों से फूटता था और मिट्टी घुल रही थी पानियों में
सो इस के उस्तुख़्वाँ देखो
मोहब्बत रात मुझ से कह रही थी उस के घर जाना
कि आँखें धुल गई हैं और चेहरा धूप देता है
गहन की मार हो उस आँख पर जो इस घटा में धूप देखे
मोहब्बत रात मुझ से कह रही थी
उस के घर जाना
मोहब्बत की ख़राबी है
ये क़ब्रें पानियों में घुल रही हैं
नज़्म
ख़राबी है मोहब्बत में
मोहम्मद अनवर ख़ालिद