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ख़लिश | शाही शायरी
KHalish

नज़्म

ख़लिश

नसीम अंसारी

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अक्सर मैं ने सोचा है
मैं बेहद सिगरेट पीता हूँ

सिगरेट पीना छोड़ूँगा
उस को भी क्यूँ याद करूँ मैं

क्या हासिल होता है मुझ को
उस की फ़िक्र भी छोड़ूँगा

जब भी मैं ने फ़िक्र से उस की
अपना दामन मोड़ा है

वो और ज़ियादा याद आया है
जब मुझ को वो याद आता है

मैं सिगरेट पीने लगता हूँ