ख़ामोशी से पूछा मैं ने
क्यूँ आती है पास तू मेरे
आख़िर क्यूँ सिमटी रहती है
क्या रक्खा है क्या मिलता है तुझ को यहाँ पर
कुछ नहीं बोली
चुप सी रही
और दूर तलक फिर फैल गई वो
नज़्म
ख़ामोशी से एक मुकालिमा
मलिक एहसान
नज़्म
मलिक एहसान
ख़ामोशी से पूछा मैं ने
क्यूँ आती है पास तू मेरे
आख़िर क्यूँ सिमटी रहती है
क्या रक्खा है क्या मिलता है तुझ को यहाँ पर
कुछ नहीं बोली
चुप सी रही
और दूर तलक फिर फैल गई वो