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केंचुली बदलती रात | शाही शायरी
kenchuli badalti raat

नज़्म

केंचुली बदलती रात

अनवार फ़ितरत

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पाईं बाग़ में
चाँद उतरा

और चंदन महका
रात की साँवल डाली से

इक नर्म गुलाबी नागिन लिपटी
चारों ओर में

रेशम नर्म हुआ का जंगल
दूद गुलाबी हरियल मख़मल

हौज़ किनारा
सीमीं पानी

झल झल करता जिस्म
उस पर

एक सियाह तिलिस्म
दूर महल की खिड़की में

वो दहका इक अँगारा
सुब्ह के मक़्तल में इक कौंदा

सजल लहू का धारा
सीज पे सज गए

ला-तादाद
बसरे और बग़दाद

मेहराबों से उमड पड़े हैं
सात दिशा के क़ुल्ज़ुम

गर्दन पर आ बैठा है
मौत का तस्मा-पा

जीवन के दरवाज़े पर
कोई पुकारे पैहम

सिम-सिम
सिम-सिम

सिम-सिम