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कौन सितारे छू सकता है | शाही शायरी
kaun sitare chhu sakta hai

नज़्म

कौन सितारे छू सकता है

अशोक लाल

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जिन चीज़ों का सपना देखा
वो सब चीज़ें पाईं हैं

जग वालों ने मेहनत की है
सारी चीज़ जटाईं हैं

अब जब सब कुछ पास है मेरे
कोई भी रोमांस नहीं

इश्क़ के कोई मज़े नहीं हैं
टीस नहीं है फाँस नहीं

सपनों की धरती उपजाऊ
सपनों से सपने उगते हैं

सपने किस माहौल में जाने
आते सोते जागते हैं

एक सवाल जो बे-मअ'नी है
क्या पाया है क्या खोया है

ग़ुर्बत या कि अमीरी का हो
पैमाना कोई पुख़्ता है

अख़्तर-उल-ईमान ने भाई
बड़े पते की बात कही है

''कौन सितारे छू सकता है
राह में साँस उखड़ जाती है''