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कौन शाएर रह सकता है | शाही शायरी
kaun shaer rah sakta hai

नज़्म

कौन शाएर रह सकता है

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

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लफ़्ज़ अपनी जगह से आगे निकल जाते हैं
और ज़िंदगी का निज़ाम तोड़ देते हैं

अपने जैसे लफ़्ज़ों का गठ बना लेते हैं
और टूट जाते हैं

उन के टूटे हुए किनारों पर
नज़्में मरने लगती हैं

लफ़्ज़ अपनी साख़्त और तक़दीर में
कमज़ोर हो जाते हैं

मामूली शिकस्त उन को ख़त्म कर देती है
उन में

टूट कर जुड़ जाने से मोहब्बत नहीं रह जाती
इन लफ़्ज़ों से

बद-सूरत और बे-तरतीब नज़्में बनने लगती हैं
सफ़्फ़ाकी से काट दिए जाने के बाद

उन की जगह लेने को
एक और खेप आ जाती है

नज़्मों को मर जाने से बचाने के लिए
हर रोज़ उन लफ़्ज़ों को जुदा करना पड़ता है

और उन जैसे लफ़्ज़ों के हमले से पहले
नए लफ़्ज़ पहुँचाने पड़ते हैं

जो ऐसा कर सकता है
शाएर रह सकता है