कौन से बाग़ में जा कर हो आए
दिल की हर बात सुना कर हो आए!
एक साअत को जहाँ देखा कई चेहरे थे
ख़ुश-नुमा बज़्म में हर एक तरफ़
फूल के अध-खिलते हुए सहरे थे
इक अजब आब-ओ-हवा बिखरी थी
जिस के चलने से सहर और बहुत निखरी थी
मैं ने हर सम्त कहा मैं हूँ! ये तुम हो?
तू है?
ऐसे आलम में ये क्या ख़ुशबू है?
इक अजब वक़्त रहा दीद का देखा पाया
महफ़िल-ए-राह में जिस जिस को ज़मीं पर देखा
उस को इस बाग़ में चलते पाया
नज़्म
कौन सा बाग़
जीलानी कामरान