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कौन? | शाही शायरी
kaun?

नज़्म

कौन?

मोहम्मद अल्वी

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कभी दिल के अंधे कुएँ में
पड़ा चीख़ता है

कभी दौड़ते ख़ून में
तैरता डूबता है

कभी हड्डियों की सुरंगों में बत्ती जला कर
यूँही घूमता है

कभी कान में आ के
चुपके से कहता है तू अब तलक जी रहा है?

बड़ा बे-हया है!
मिरे जिस्म में कौन है ये

जो मुझ से ख़फ़ा है