कैसे चलते समय वो रोई
गले से लग कर बिलक बिलक कर
फिर आँखों को चूमना उस का उचक उचक कर
दूर हटना और देखना मुझ को ठिठुक ठिठुक कर
गिर पड़ना फिर खुली हुई बाँहों में थक कर
शाम-ए-जुदाई
माँ से महबूबा तक कितने रूप थे उस के
नज़्म
कष्ट
ऐतबार साजिद
नज़्म
ऐतबार साजिद
कैसे चलते समय वो रोई
गले से लग कर बिलक बिलक कर
फिर आँखों को चूमना उस का उचक उचक कर
दूर हटना और देखना मुझ को ठिठुक ठिठुक कर
गिर पड़ना फिर खुली हुई बाँहों में थक कर
शाम-ए-जुदाई
माँ से महबूबा तक कितने रूप थे उस के