सुर्ख़ फूलों से लहू फूट रहा है शायद
आज जन्नत में जहन्नुम के नज़ारे देखो
आज मज़दूर के माथे का पसीना बन कर
आसमानों से भी टूटेंगे सितारे देखो
आज महकूम निगाहों को जलाल आया है
राख की गोद में पलते हैं शरारे देखो
आज ऐवान-ए-हुकूमत के सुतूँ काँप उठे
किस तरह मुड़ गए ये ख़ून के धारे देखो
जब्र और ज़ुल्म की तारीख़ बदल जाएगी
आज बदली हुई दुनिया के इशारे देखो
आज आँखों से नया गीत सुनाते जाओ
ख़ून से वक़्त की ये आग बुझाते जाओ
नज़्म
कश्मीर
अख़्तर पयामी