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कश्फ़ | शाही शायरी
kashf

नज़्म

कश्फ़

यासमीन हमीद

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मैं अपनी खोज में गुम थी
कि मैं क्या हूँ

अज़ल के हादसे का सिलसिला हूँ
या फ़क़त मिट्टी की मूरत हूँ

मुसख़्ख़र करने वाला ज़ेहन हूँ
एहसास की धीमी सजल आवाज़ हूँ

या अपने ख़ालिक़ की
कोई ऐसी अदा हूँ

जो उसे ख़ुद भा गई है
तुम्हें पाया तो ये जाना

कि मेरा भी कोई मफ़्हूम होगा
तुम्हें खो कर

मिरे मफ़्हूम की सूरत निखर आई
फ़िशार-ए-बे-यक़ीनी ने

वफ़ा के बा'द गुम्बद में
अज़ल के कर्ब की सूरत में

अपनी इब्तिदा देखी
अबद के आइने में

इंतिहा का नक़्श भी देखा
ख़ुदा का अक्स भी देखा