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कराची का मवासलाती मुशाइरा | शाही शायरी
karachi ka mawasalati mushaira

नज़्म

कराची का मवासलाती मुशाइरा

खालिद इरफ़ान

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अहल-ए-अदब ने फिर ये किया तजरबा नया
शायर मवासलात की दुनिया पे छा गया

मिर्रीख़ पर मुशायरा कर लो कि मून पर
हम तो अब अपने शेर सुनाएँगे फ़ोन पर

शायर इधर है, सद्र उधर, सामईन उधर
मैं फूँक मारता हूँ तो बजती है बीन उधर

दूल्हा को फ़ासले पे रखा है बरात से
मतलब ये है कि दूर रहो शाएरात से

अमरीका से ग़ज़ल जो पढ़ी हम ने लहर में
गूँजी है उस की दाद कराची के शहर में

शेरों में आ गया है जो मग़रिब का रंग-ए-ख़ास
महसूस हो रहा है कि शायर है बे-लिबास

किस हाल में कलाम-ए-बलाग़त हुआ अता
शायर है बाथ-रूम में सामे को क्या पता

बे-शक मवासलाती क़दम इंक़िलाबी है
अटके जहाँ पे कह दिया फ़न्नी ख़राबी है

शायर ने शेर अर्ज़ किया रामपूर से
मिस्रा उठा दिया है किसी ने क़ुसूर से

शायर ने जब बयाज़ निकाली जहाज़ में
गूँजी हैं ''वाह-वा'' की सदाएँ हिजाज़ में

रॉकेट की तरह शेर गिरे सामईन पर
शायर है आसमाँ पे तबाही ज़मीन पर

पहले ये हुक्म था कि दलाएल से शेर पढ़
और अब ये कह रहे हैं मोबाइल से शेर पढ़

कहते थे पहले शेर को मिस्रा उठा के पढ़
और अब ये कह रहे हैं कि डायल घुमा के पढ़

कहने लगे बुराई को दोज़ख़ में झोंक दे
माइक से दूर है तो रिसीवर में भोंक दे

जब दाद मिल रही थी मुझे सामईन से
इक शेर लड़ गया था किसी मह-जबीन से

मैं ने जो फ़ासलों की ये दीवार पाट दी
सद्र-ए-ग्रामी ने मिरी लाईन ही काट दी