तुम मुझे क़त्ल न करो
मैं ख़ुद कई टुकड़ों में बट जाऊँगा
मेरा एक टुकड़ा
कपास का फूल बन जाएगा
और दूसरा वो आग
जो कपास के फूल से रौशन होती है
तुम मुझे क़त्ल न करो
मैं ख़ुद कई टुकड़ों में
बट जाऊँगा
मेरा एक टुकड़ा
दरिया बन जाएगा और दूसरा
वो चाँद जो इस दरिया में डूब जाता है
हाँ मुझे क़त्ल न करो
क्यूँकि मैं अपनी शहादत की
गवाही देने के लिए दोबारा
पैदा हो जाऊँगा
क्या तुम नहीं देखते कि सूरज
दोबारा निकल आता है
चाँद दोबारा तुलूअ हो जाता है
और कपास का फूल दोबारा खिल जाता है
और इबादत-गाहों में आग
दोबारा रौशन हो जाती है
नज़्म
कपास का फूल
क़मर जमील