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कल रात | शाही शायरी
kal raat

नज़्म

कल रात

निदा फ़ाज़ली

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कल रात
वो थका हुआ

चुप चुप
उदास उदास

सुनता रहा सड़क से गुज़रती बसों का शोर
पीपल का पत्ता टूट के दीवार ढा गया

आंतों का दर्द नींद की परियों को खा गया
झुँझला के उस ने चाँदी का दीपक बुझा दिया

आकाश को समेट के नीचे गिरा दिया
फैली हुई ज़मीं को धुएँ सा उड़ा दिया

फिर कुछ नहीं
न खेत, न मैदाँ, न रास्ते

बस इक निगाह
खिड़की की रंग-जालियाँ

(बस तीन चार आने की दो चार गोलियां)