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कल क्या होगा | शाही शायरी
kal kya hoga

नज़्म

कल क्या होगा

सय्यद मुबारक शाह

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कल क्या होगा
आँख खुली तो कल क्या होगा

ख़्वाब को वापस नींद में रख कर
नींद को छोड़ के बिस्तर मैं

जब बिस्तर को तुम छोड़ोगे
तो दुनिया होगी

सुब्ह की दुनिया
कान अज़ाँ से भरने वाली

पीर धरोगे धरती पर तो
अर्श को सर पे धरने वाली

सर से अर्श ढलकते लम्हे घर आए तो
दरवाज़े पर दुनिया होगी

रात की दुनिया
आँख में नींद और नींद को ख़्वाब से भर सकती है

इस मामूल से हट कर दुनिया और अमल क्या कर सकती है
हैरत ही उकता जाए तो कोई मुअम्मा हल क्या होगा

ख़्वाब में अब के आँख खुली तो ग़ौर से तकना
कल जब तुम ने आँख न खोली कल क्या होगा